Bhagwan Kaise Dikhte Hain?: वेद मानव धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं, जो पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब द्वारा काल ब्रह्म को मुक्त कराने के लिए दिए गए थे। वेदों में न केवल पूर्ण परमात्मा की महिमा का वर्णन है बल्कि उसकी प्राप्ति की जानकारी भी दी गई है। वेदों के अनुसार, परमात्मा कैसा है, कौन है और कहाँ रहता है, इन सब की जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई है। हालांकि, तत्वज्ञान के अभाव में ऋषियों और संतों ने परमात्मा को निराकार मान लिया, जबकि वेदों में प्रमाण है कि परमात्मा साकार है और उसका शरीर नूर तत्व से बना है।
यजुर्वेद के प्रमाण (Bhagwan Kaise Dikhte Hain?)
- यजुर्वेद अध्याय 40, मंत्र 8:
- इस मंत्र में कहा गया है कि “कविर मनिषी” जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है।
- उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है और वीर्य से बनी भौतिक काया रहित है।
- वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है।
- उसका तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है।
- वह शब्द रूप अर्थात अविनाशी है।
- वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है, जो सर्व ब्रह्माण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्माण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्यः अर्थान्) वास्तव में अविनाशी है।
- इस मंत्र से स्पष्ट होता है कि पूर्ण ब्रह्म का नाम कबीर (कविर देव) है और उसका शरीर नूर तत्व से बना है।
- यजुर्वेद अध्याय 5, मंत्र 1:
- इस मंत्र में दो बार कहा गया है कि परमेश्वर का शरीर है।
- उस सनातन पुरुष के पास सबका पालन-पोषण करने के लिए शरीर है।
- जब भगवान अपने भक्तों को तत्वज्ञान समझाने के लिए कुछ समय के लिए इस संसार में आते हैं, तो वे अपने वास्तविक दीप्तिमान शरीर पर प्रकाश के हल्के पुंज का शरीर धारण करके आते हैं।
- इसलिए उक्त मंत्र में दो बार प्रमाण दिया है कि परमात्मा सह शरीर है।
- यजुर्वेद अध्याय 1, मंत्र 15:
- इस मंत्र में कहा गया है कि ईश्वर का शरीर है और वह आकार में है।
अन्य वेदों के प्रमाण (Bhagwan Kaise Dikhte Hain?)
- ऋग्वेद मण्डल 10, सूक्त 4, मंत्र 3:
- इस मंत्र में कहा गया है कि पूर्ण परमात्मा काल के बन्धन में बंधे प्राणी को छुड़ाने के लिए आता है।
- वह बच्चे का रूप स्वयं अपनी शब्द शक्ति से धारण करता है।
- उसका जन्म व पालन – पोषण किसी माता द्वारा नहीं होता।
- ऋग्वेद मण्डल 1, सूक्त 1, मंत्र 5:
- इस मंत्र में कहा गया है कि सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर जो तेजोमय शरीर युक्त है।
- वह साधकों के लिए पूजा करने योग्य है।
- उसकी प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताए वास्तविक भक्ति मार्ग से होती है।
गीता के प्रमाण (Bhagwan Kaise Dikhte Hain?)
- गीता अध्याय 11, श्लोक 47-48:
- गीता ज्ञान दाता ने अपने विराट रूप का दर्शन अर्जुन को दिया।
- यह रूप केवल अर्जुन को ही दिखाया गया, किसी अन्य को नहीं।
- इस श्लोक में कहा गया है कि यह स्वरूप न तो वेदों में वर्णित विधि से, न जप से, न तप से, न यज्ञ आदि से देखा जा सकता है।
- इससे सिद्ध हुआ कि क्षर पुरुष (गीता ज्ञान दाता) को किसी भी ऋषि-महर्षि व साधक ने नहीं देखा।
- जिस कारण से इसे निराकार मान बैठे।
- गीता अध्याय 7, श्लोक 24-25:
- गीता ज्ञान दाता ने अपने आपको अव्यक्त कहा है क्योंकि वह श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोल रहा था।
- अव्यक्त का अर्थ साकार होता है।
- उदाहरण के लिए, जैसे सूर्य के सामने बादल छा जाते हैं, उस समय सूर्य अव्यक्त होता है। हमें भले ही दिखाई नहीं देता, परन्तु सूर्य साकार है।
- जो प्रभु हमारे को सामान्य साधना से दिखाई नहीं देते, वे अव्यक्त कहे जाते हैं।
निष्कर्ष (Bhagwan Kaise Dikhte Hain?)
पूर्ण परमात्मा साकार और मनुष्य जैसा है। वह चारों युगों में पृथ्वी पर अवतरित होता है और अपनी पुण्य आत्माओं को मिलता है। वेदों और गीता में स्पष्ट रूप से प्रमाणित है कि परमात्मा का शरीर नूर तत्व से बना है और उसका नाम कविर्देव अर्थात कबीर देव है। वह तेजोमय शरीर युक्त है और साधकों के लिए पूजा करने योग्य है। उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि परमात्मा साकार है और उसका स्वरूप मानव जैसा है।
इससे सिद्ध होता है कि भगवान साकार है और उनके शरीर का वर्णन वेदों और गीता में मिलता है। वह मनुष्य जैसा आकार रखता है और उसकी महिमा अविनाशी है। तत्वज्ञान के माध्यम से ही उसकी वास्तविकता को समझा जा सकता है।